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इ꣣मा꣢꣫ नु कं꣣ भु꣡व꣢ना सीषधे꣣मे꣡न्द्र꣢श्च꣣ वि꣡श्वे꣢ च दे꣣वाः꣢ ॥१११०

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स्वर-रहित-मन्त्र

इमा नु कं भुवना सीषधेमेन्द्रश्च विश्वे च देवाः ॥१११०

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इ꣣मा꣢ । नु । क꣣म् । भु꣡व꣢꣯ना । सी꣣षधेम । इ꣡न्द्रः꣢꣯ । च꣣ । वि꣡श्वे꣢꣯ । च꣣ । देवाः꣢ ॥१११०॥१

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1110 | (कौथोम) 4 » 1 » 23 » 1 | (रानायाणीय) 7 » 7 » 2 » 1


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम ऋचा पूर्वार्चिक में ४५२ क्रमाङ्क पर अध्यात्म विषय में और राष्ट्र के विषय में व्याख्यात हो चुकी है। यहाँ भिन्न अर्थ प्रदर्शित किया जाता है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हम (इन्द्रः च) हमारा जीवात्मा (विश्वे च देवाः) और मन, बुद्धि, प्राण, ज्ञानेन्द्रिय, कर्मेन्द्रिय रूप अन्य देव मिलकर (नु कम्) शीघ्र ही (इमा भुवना) इन सब सूर्य, चन्द्र, मङ्गल, बुध, बृहस्पति, भूमि आदि भुवनों को (सीषधेम) सिद्ध् करें, अर्थात् उनके विषय में ज्ञान प्राप्त कर तथा साधनों का प्रयोग करके उन्हें अपने अनुकूल करें ॥१॥

भावार्थभाषाः -

विद्वानों को चाहिए कि सब भूगोल और खगोल की विद्याएँ जानकर अन्य लोकों से होनेवाले सब लाभों को प्राप्त करें तथा उनसे सम्भावित हानियों को दूर करें ॥१॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्र प्रथमा ऋक् पूर्वार्चिके ४५२ क्रमाङ्केऽध्यात्मविषये राष्ट्रविषये च व्याख्याता। अत्र भिन्नोऽर्थः प्रदर्श्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

वयम्, (इन्द्रः च) अस्माकं जीवात्मा च (विश्वे च देवाः) मनोबुद्धिप्राणज्ञानेन्द्रियकर्मेन्द्रियरूपा अन्ये च देवाः मिलित्वा (नु कम्) सद्य एव (इमा भुवना) इमानि सर्वाणि भुवनानि सूर्यचन्द्रमङ्गलबुधबृहस्पतिभूम्यादीनि (सीषधेम) साधयेम, तद्विषयकज्ञानेन साधनानां प्रयोगेण च स्वानुकूलानि कुर्याम ॥१॥

भावार्थभाषाः -

विद्वद्भिः सर्वा भूगोलखगोलविद्या विज्ञायान्येभ्यो लोकेभ्यो जायमाना लाभाः सर्वे प्राप्तव्या हानयश्च परिहरणीयाः ॥१॥

टिप्पणी: १. ऋ० १०।१५७।१, साम० ४५२।